सुजानगढ़ की हवेलियों की जब भी बात आती है तो लोगो के जुबान पर जिस हवेली का नाम सबसे पहले आता है वो है मूँधड़ा जी की हवेली ।।
इसका मुख्य कारण यही है कि इस हवेली को घंटाघर बाज़ार से आसानी से देखा जा सकता है, जिससे ये लोगो की नज़र में आसानी से आ जाती हैं ।।
इसके अलावा सेठ दामोदर जी मूँधड़ा स्वयं सुजानगढ़ और राजस्थान के लोगो के मन में अपनी एक अलग पहचान रखते थे।।
ये साहित्यकार,प्रखर वक्ता,समाज सेवी एवं राजस्थानी के प्रबल समर्थक थे।
इनके द्वारा रचित दृष्टिकोण, उपमेय--मंजूषा ,कपड़छान,गुलदस्ता, इजहार, विहंगावलोकन,गवाक्ष तथा दृष्टिपात कुल आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
आजादी से पूर्व इन्हे बीकानेर रियासत द्वारा सुजानगढ का म्युनिसिपल कमिश्नर नियुक्त किया गया था।
सुजानगढ को अच्छे ढंग से बसाने व व्यापार म॔डी बनाने के लिए सेठ दामोदर जी मूँधड़ा के परपितामह सेठ हीरानन्द जी मूँधड़ा महाराजा रतन सिंह जी के आग्रह पर लाडनूं से सुजानगढ़ आये थे ।।
हवेली की बात करे तो हवेली का रखरखाव काफी अच्छे तरह से किया गया , हवेली का सबसे खूबसूरत हिस्सा है सेठ दामोदर जी का कक्ष, इसमें कुछ भी बदलाव नहीं किया गया हैं जैसे ये पुराने जमाने में था वैसा ही ये आज हैं ।।
इसके अलावा हवेली में एक छोटा सा पूल भी बना हुआ है जो कि सड़क के ऊपर से जाता है, सुजानगढ़ व इसके आस पास के क्षेत्र में इस तरह के सिर्फ ३ पूल बनाए गए थे , जिनमें से एक जसवंतगढ़ और एक लाडनूं में देखा जा सकता हैं ।।
हवेली के वर्तमान सेठ, सेठ दामोदर जी मूँधड़ा के पुत्र शशिकांत जी मूँधड़ा व रविकांत जी मूँधड़ा है ।।
सेठ रविकांत जी मूँधड़ा के पुत्र तनय जी मूँधड़ा का धन्यवाद जिन्होंने इतनी खूबसूरत हवेली को हमें दिखाया और हवेली के बारे में और सेठ दामोदर जी मूँधड़ा के बारे में इतनी सारी महत्वपर्ण जानकारी भी दी ।।
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