सुजानगढ़ में उतनी हवेलियां देखने को नहीं मिलती जितनी की लाडनूं और चूरू में देखने को मिलती हैं , जो थोड़ी बहुत हवेलियां यहां मौजूद हैं उनका उस तरह से रखरखाव नहीं किया गया है जिस तरह से होना चाहिए था, लेकिन डागा जी की हवेली को लेकर ऐसा नहीं हैं करीब १०० साल पुरानी हवेली होने के बाद भी इसका रखरखाव काफी अच्छे से किया गया हैं ,
इस हवेली का निर्माण नेमीचंद जी डागा ने करवाया था, जैसा की इसके नाम से ज्ञात होता है, वर्तमान में इनकी तीसरी पीढ़ी हवेली के मालिक हैं, जो कि कलकत्ता रहते हैं, लेकिन वे समय समय पर सुजानगढ़ आते रहते हैं,
हवेली की दीवार पर हिन्दू देवी देवताओं के चित्र बने हुए हैं , चित्रों का निर्माण 19 वीं शताब्दी के मध्य या उत्तराद्र्ध में होने के कारण इन पर यूरोपीय प्रभाव भी अधिक रहा है।
हवेली के कमरों में बने भितीचित्र और कलाकृति के बारे में काफी कुछ सुना हुआ है लेकिन हवेली के कमरे इनके मालिक आने पर ही खुलते है , इसलिए ये कमरे तो देखने को नहीं मिले ,
लेकिन सैकड़ों साल बीतने के बाद भी इस हवेली का अपना एक आकर्षण है तो जरा सोचिये जब इस हवेली का निर्माण हुआ होगा तब देखने में ये कितनी कलात्मक और भव्य लगती होंगी ....
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