पाबोलाब धाम, जसवंतगढ़

सुजानगढ़ से हटकर एक पोस्ट हमारे पसंदीदा स्थान पाबोलाब धाम के लिए ❤️

नागौर जिले के लाडनू और जसवंतगढ़ के बीच स्थित श्री बालाजी की प्राकट्य भूमि पाबोलाव...

वि. स. 1811 को आसोटा गांव में एक किसान को हल चलाते समय हनुमानजी कि दो मूर्तियां मिली, एक मूर्ति में हनुमानजी एक हाथ में गदा और पहाड़ उठाए हुए थे तथा दूसरी मूर्ति में हनुमान जी के कंधो पर राम और लक्ष्मण विराजित थे, किसान आसोटा गांव के ठाकुर गज सिंह के पास गया और उन्हें बताया कि उसे खेत में हल चलाते हुए हनुमानजी की दो मूर्तियां मिली हैं, ठाकुर गज सिंह ने किसान आदेश दिया कि वो दो मूर्तियां यहां ले आओ और मेरी कोठरी मे रख दो, रात को ठाकुर को सपने में हनुमानजी दिखते है और वो ठाकुर को कहते है कि तुमने मेरी मूर्तियों को कोठरी में बन्द क्यों किया, तब अगले दिन ठाकुर दो बैलगाड़ियों पर उन मूर्तियों को रखवाकर ये आदेश देता है कि ये बैलगाड़ियां जहां भी रुके वहीं ये मूर्ति स्थापित कर देना, और एक बैलगाड़ी आसोटा गांव से एक किलोमटर दूर पाबू तलाई पर आकर रुकती है, फिर यहां हनुमानजी की मूर्ति स्थापित की गई जिससे ये स्थान पाबोलाव धाम कहलाया ।।

तथा दूसरी बैलगाड़ी सालासर जाकर रुकी जहां आज भव्य सालासर दरबार है ।।

यह स्थान हमारे लिए सिर्फ एक स्थान नहीं है, जीवन में परेशानियों के बीच सिर्फ यहीं स्थान हैं जहां कुछ पल यदि बैठ जाए तो मन थोड़ा हल्का सा हो जाता हैं ,

यहां आकर अपनापन भी लगता है और परायापन भी, एक समय के लिए मन करता है सारी उदासियां जिंदगी से निचोड़कर यहां उकेर दे, वो तमाम बोझिल पल और असफलताएं जिन्होंने कुछ हासिल नहीं होने दिया, और अगले ही पल अंदर सब शून्य सा हो जाता है, सब कुछ शांत और शून्य , सुनाई देती है तो सिर्फ पेड़ो से आती पंछियों की चहचहाहट , और महसूस करते है तेज चलती हवाओं को , जिनके साथ हमारा मन भी कहीं और ही चला जाता हैं ,

ऐसा लगता है यह स्थान अपने अंदर बहुत कुछ समेटे हुए हैं शायद हमारी ही तरह बहुत से लोगो के दुःख और असफलताएं ।।

नोट 

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जानकारी आभार 
मंदिर ट्रस्ट परिवार और ग्राम वासी ( धन्यवाद )

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