सुजानगढ़ में जन्मे संगीतकार खेमचंद प्रकाश
वे खेमचंद प्रकाश जिन्होंने लता मंगेशकर से फ़िल्म ‘महल’ (1949) का गाना ‘आएगा आने वाला’ और किशोर कुमार से ‘जिद्दी’ (1948) का ‘मरने की दुआएं क्यूं मांगूं, जीने की तम्मना कौन करे’ गवाकर दुनिया को दो सितारे दे दिए....
ये लता मंगेशकर के गुरु भी माने जाते हैं ..
खेमचंद प्रकाश को संगीत विरासत में मिला था. उनके पिता पंडित गोवर्धन प्रसाद जयपुर के महाराज माधो सिंह (द्वितीय) के दरबारी गायक थे.
खेमचंद प्रकाश 19 बरस की उम्र में यहीं दरबारी गायक और कथक नृत्यकार बन गए. क़िस्मत में बॉम्बे (मुंबई) आना बदा था.
पर देखिये, वही क़िस्मत पहले कहां-कहां लेकर गयी. बीसवीं सदी में भारत के राजाओं-महाराजाओं की स्थिति ख़राब थी.
जयपुर से निकलकर खेमचंद प्रकाश कुछ दिनों के लिए राजा गंगा सिंह के बुलावे पर बीकानेर चले गए.
वहां मन नहीं लगा तो नेपाल के राजदरबार में गायक हो गए.
कुछ समय बाद वहां से कलकत्ता आकर रेडियो कलाकार बन गए. यहां उनकी मुलाकात संगीतकार तिमिर बरन से हुई जिन्होंने खेमचंद को ‘न्यू थिएटर्स’ के लिए अनुबंधित कर लिया.
1935 में आई पहली ‘देवदास’ का संगीत तिमिर बरन का ही था.
कहते हैं कि इसके गाने ‘बालम आये बसो मेरे मन में’ और ‘दुःख के दिन अब बीतत नाहीं’ खेमचंद ने ही कंपोज़ किये थे. हालांकि, इनके गीतकार केदार शर्मा इनका क्रेडिट महान कुंदन लाल सहगल को देते हैं....
खेमचंद प्रकाश ने कई फ़िल्मों में शानदार संगीत दिया...
.
सुजानगढ़ में एक हवेली है, जो खेमचंद प्रकाश ने अपनी बेटी के नाम पर ख़रीदी थी. मुफ़लिसी के दिनों में यह गिरवी रखी गयी. अब कोई और ही इसका मालिक है.।।
1 टिप्पणियाँ