एक ऐसी हवेली जो किसी संग्रालय से कम नहीं : कठोतिया जी की हवेली

कठोतिया जी की हवेली के बारे में बहुत कुछ सुना हुआ था, लेकिन कभी देखने का मौका नहीं मिला, लेकिन जब देखने का मौका मिला तो सावन का अंधा हो गया ,
कभी कल्पना भी नहीं की थी की सुजानगढ़ में एक हवेली ऐसी भी देखने को मिलेगी , इस हवेली की सुंदरता और इसपर बने भितिचित्रो की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम हैं ...
आज से करीब २०० साल पहले परसाराम जी के पुत्र सेवारामजी, ताराचंद जी और रतनचंद जी लाडनूं से सुजानगढ़ आए ,उस समय बीकानेर के तत्कालीन महाराजा रतनसिंहजी ने सुजानगढ़ शहर को बसाने के लिए आगेवान समझकर इन्हे बहुत सी जमीन मकान और दुकानें बनवाने के लिए भेंट की ।। रतनचंद जी का परिवार वापस लाडनूं चला गया और ताराचंद जी के कोई संतान नहीं थी, वर्तमान परिवार सेवाराम जी के दूसरे पुत्र पदमचंद जी का हैं ।।
इस हवेली का निर्माण करीबन १६० साल पहले हुआ था,
हवेली में जहा नजर पड़ी वहां कुछ नया देखने को मिला, रथ से लेकर , बहुत सी पुरानी वस्तुओं पर ।।
यह हवेली अपने आप में किसी संग्रहालय से कम नहीं है..
इस हवेली में इतना कुछ है की इस पर अलग से एक किताब लिखी जा सकती है, मुझे मौका मिले तो शायद कभी मै ही लिख लू ..
यह हवेली, हवेली पर बने भितचित्र ये सब आपको मंत्रमुग्ध कर देते हैं ।।
लेकिन इन सबसे ज्यादा मै प्रभावित हुआ हवेली के वर्तमान सेठ बजरंग जी कठोतिया से मिलकर, यह इस हवेली की 7 वी पीढ़ी है
इनसे मुलाकात कुछ इस तरह थीं जैसे कि थार के रेगिस्तान में रेतीले टिलो के बीच पानी का मिलना ..
सुजानगढ़ के इतिहास के बारे में , यहां की हवेलियों के बारे में, इन हवेलियों का निर्माण कब हुआ, किसने किया, इन सब के बारे में शायद ही किसी को इतना ज्ञात हो जितना कि इन्हे मालूम हैं ।।
करीबन २ घंटे की मुलाकात में इन्होंने इस हवेली के इतिहास के साथ साथ, सुजानगढ़ का इतिहास तथा उस समय बीकानेर रियासत का सुजानगढ़ पर क्या प्रभाव था वो भी बताया , इसके साथ ही उस समय के कुछ रीति रिवाजों के बारे में भी बताया जैसे की राजाओं को नजराना कैसे दिया जाता था आदि ।।
हवेली में एक महफ़िल भी बनी हुई है वो इस हवेली का सबसे खूबसूरत हिस्सा बताया जाता हैं , वो आज तो देखने नहीं मिली लेकिन कभी शायद पुनः इस हवेली को देखने का मौका मिलेगा तब वो भी देखने को मिले
वैसे भी महफ़िल के बारे में इतना कुछ सुन चुका हूं कि उसपर अलग से बहुत कुछ लिखा जा सकता हैं ।।

नोट 

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